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Baba baidyanath hum aail chi bhikariya

  बाबा बैद्यनाथ हम आयल छी भिखरिया अहाँ के दुअरिया ना अइलों बड़ बड़ आस लगायल होहियो हमरा पर सहाय एक बेरी फेरी दियौ गरीब पर नजरिया, अहाँ के दुअरिआ ना। १। हम बाघम्बर झारी ओछायब डोरी डमरू के सरियाएब कखनो झारी बुहराब बसहा के डगरिया, अहाँ के दुअरिया ना। २। कार्तिक गणपति गोद खेलायब कोरा कान्हा पे चढ़ायब गौरा-पारबती से करबेन अरजिया, अहाँ के दुअरिया ना। ३। हम गंगाजल भरी भरी लायब, बाबा बैजू के चढ़ायब बेलपत चन्दन चढ़ायब फूल केसरिया, अहाँ के दुअरिया ना।४। कतेक अधम के अहाँ तारलों, कतेक पतित के उबारलों बाबा एक बेर फेरी दियौ हमरो पर नजरिया, अहाँ के दुअरिया ना।५। काशीनाथ नचारी गवैया माता पारवती के सुनवइया, बाबा एक बेर फेरी दियौ हमरो पर नजरिया, अहाँ के दुअरिया ना।६। बाबा बैद्यनाथ हम आयल छी भिखरिया अहाँ के दुअरिया ना

यजुर्वेद में वर्णित है नवग्रहों के सुंदर मंत्र नवग्रहों के 9 वैदिक मंत्र

वैदिक काल से ग्रहों की अनुकूलता के प्रयास किए जाते रहे हैं। यजुर्वेद में 9 ग्रहों की प्रसन्नता के लिए उनका आह्वान किया गया है। यह मंत्र चमत्कारी रूप से प्रभावशाली हैं। प्रस्तुत है नवग्रहों के लिए विलक्षण वैदिक मंत्र- * सूर्य- ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् (यजु. 33। 43, 34। 31) * चन्द्र- ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।। ( यजु. 10। 18) * भौम- ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। (यजु. 3।12) * बुध- ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च। अस्मिन्त्सधस्‍थे अध्‍युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यशमानश्च सीदत।। (यजु. 15।54) * गुरु- ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।। (यजु. 26।3) * शुक्र- ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:। ...

नवधा भक्ति का अर्थ सहित वर्णन

  श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ श्रवण , कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन,वंदन,, दास्य, सख्य, और आत्मनिवेदन - इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं । श्रवण---( परीक्षित)            ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना। कीर्तन---(  शुकदेव)          ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना। स्मरण---(प्रह्लाद)           निरंतर अनन्य भाव से परमेश्वर का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना। पाद सेवन----(लक्ष्मी)        ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना। अर्चन-----(पृथुराजा)               मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना। वंदन-----(अक्रूर)          भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के अंश रूप में व्याप्त भक्तज...

शिवमहिम्न (Shiv mahiman)

  शिवमहिम्न  शिवमहिम्न स्तोत्र में 43 श्लाेक हैं, श्लाेक तथा उनके भावार्थ निम्नांकित हैं [1] -- पुष्पदन्त उवाच - महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी। स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः।। अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन्। ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः।। १।।   भावार्थ:  पुष्पदंत कहते हैं कि हे प्रभु ! बड़े बड़े विद्वान और योगीजन आपके महिमा को नहीं जान पाये तो मैं तो एक साधारण बालक हूँ, मेरी क्या गिनती? लेकिन क्या आपके महिमा को पूर्णतया जाने बिना आपकी स्तुति नहीं हो सकती? मैं ये नहीं मानता क्योंकि अगर ये सच है तो फिर ब्रह्मा की स्तुति भी व्यर्थ कहलाएगी। मैं तो ये मानता हूँ कि सबको अपनी मति अनुसार स्तुति करने का अधिकार है। इसलिए हे भोलेनाथ! आप कृपया मेरे हृदय के भाव को देखें और मेरी स्तुति का स्वीकार करें। अतीतः पंथानं तव च महिमा वांमनसयोः। अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि।। स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः। पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः।। २।। भावार्थ:  आपकी व्याख्या न तो मन, न ही वचन द्वारा संभव है। आपके सन्दर्भ म...