श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ श्रवण , कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन,वंदन,, दास्य, सख्य, और आत्मनिवेदन - इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं । श्रवण---( परीक्षित) ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना। कीर्तन---( शुकदेव) ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना। स्मरण---(प्रह्लाद) निरंतर अनन्य भाव से परमेश्वर का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना। पाद सेवन----(लक्ष्मी) ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना। अर्चन-----(पृथुराजा) मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना। वंदन-----(अक्रूर) भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के अंश रूप में व्याप्त भक्तज...